किसी गाँव में एक परिवार रहता था जिसमें चार लड़के और एक लड़की थी । समय बीतता गया और सभी बच्चों की शादियाँ भी हो गई। पति -पत्नी अपनी जीमेदारियाँ भली-भांति निभा चुके थे, सभी लड़के अपना कारोबार संभाल रहे थे एंव खुश थे । लेकिन धीरे-धीरे उस परिवार में पिता को लेकर आए दिन झगड़ा होने लगा कि उनकी देखभाल कौन करेगा । किसी के भी पास इतना समय नहीं था कि वह पिता के पास जाकर उनका हालचाल पूछें एंव उनकी देखभाल करें । बुजुर्ग पिता दिन भर उन दिनों के बारे में सोचता रहता, जब वह जवान था और बच्चों के भविष्य को सवारने में लगा रहता था ।
एक दिन अचानक जनगणना वाला एक अफसर उधर आया । बार-बार दरवाजा खटखटाने पर भी जब कोई बाहर नहीं आया परंतु खाँसने कि आवाज लगातार आ रही थी, तब वह अफसर अंदर चला गया और उसने देखा कि एक अस्सी साल का बुजुर्ग चारपाई पर लेटा है और पानी मांग रहा है, परंतु वहाँ पर कोई नहीं था। तब उस अफसर ने उस बुजुर्ग को पानी पिलाया और पूछा 'बाबा यहाँ अकेले रहते हो' तब बुजुर्ग ने बोला नहीं मेरा भरपूर परिवार है लेकिन वे मेरा बोझ उठा पाने में असमर्थ हैं इसलिए उन्होने मुझे यहाँ घर से बाहर एक कमरे में रख दिया हैं और रोते-रोते अपनी सारी कहानी सुना दी। अफसर सोचने लगा कि चार बेटों के होते हुए भी पिता आज इतना लाचार है।
इस बात को बहुत दिन हो गये थे वही अफसर अपने शहर वापिस आया तो अचानक उसकी नजर बेंच पर बैठे एक व्यक्ति पर गई उसे वह उनके पास पहुंचा और बोला 'बाबा आप यहाँ केसे' तब उस बुजुर्ग ने बताया, बेटा उस दिन में तुम्हें अपनी एक बेटी के बारे में बताना भूल गया था। तुम्हारे जाने के कुछ दिन बाद ही मेरी बेटी घर आई और उसने मेरे बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि दादाजी तो नोकरों के साथ वाले कमरे में रहते हैं। बेटी दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और मुझे अपने साथ शहर ले आई। अब बेटी मेरा पूरा ध्यान रखती है बिना किसी स्वार्थ के। बेटा में अब बहुत खुश हूँ। जिस बेटी को पराया धन समझकर हम उसको सही ढंग से पलने-बढ़ने का भी मौका नहीं देते वही माँ-बाप का मरते दम तक साथ नहीं छोड़ती।
कृपया बेटियों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाइए।
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