कटहल के लिए पानी के निकास वाली गहरी उपजाऊ दोमट भूमि अच्छी रहती है। कटहल की दो किस्में होती हैं। कड़े गूदे वाली व मुलायम गूदे वाली इसकी जो प्रमुख जातियां हैं उनमें रुद्धक्षी के फल छोटे व कांटे वाले होते हैं। इनका वजन 4 से 5 किलो तक होता है। पूर्ण अवस्था प्राप्त वृक्षों से 500 से अधिक फल प्राप्त होते यह सब्जी के लिए उपयुक्त किस्म है। सिंगापूर जाति का वजन 7 से 10 किलो तक होता है। मुतम औसत 7 किलोग्राम तक का फल लगता है। सबसे बड़े फल वाली किस्म खाजा है यह इसमें सफ़ेद कोये वाले फल का भार 25 से 30 किलोग्राम तक होता है। कटहल का उद्यान लगाने के लिए चयनित स्थान पर रेखांकन कर 10 मीटर कतार एवं 10 मीटर पौधे की दुरी पर एक मीटर लम्बे चौड़े एवं गहरे आकर के गड्डो को खोदकर खेत की मिट्टी व गोबर खाद के मिश्रण के साथ 500 ग्राम सुपर फास्फेट, 500 ग्राम पोटास एवं 50 ग्राम ऐलडेग्स चूर्ण मिलाकर भर दिए जाते हैं। वर्षा ऋतू में पौध के रोपण हेतु उपयुक्त समय होता है। पौध रोपण के बाद मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देते है और नियमित देखभाल जाती है।
पौधों में संतुलित मात्रा में 1 से 6 वर्ष तक गोबर की खाद एवं उर्वरक की मात्रा दी जाती है। पौधों की सिंचाई हेतु गर्मी में 15 दिन व सर्दी ऋतू में 1 माह में सिंचाई की जाती है। दो तीन वर्ष की उम्र के पौधों की गर्मी के समय 7 दिन व ठण्ड में 15 दिन में सिंचाई करना ठीक रहता है।
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