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ठंडी जलवायु की फसल है मूंगफली

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Submitted by Toshiba Anand on Fri, 09/14/2018

मूंगफली : भारत की मुख्य तिलहनी फसल है | यह गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है | मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्वपूर्ण फसल मानी जाने लगे है.......

खेती की तैयारी : मूंगफली की खेती के लिए लगभग 70-90 फा. तापमान एवं ठंडी रात फसल परिपक्वता के समय तथा वार्षिक वर्षा 50-125 से.मी. होनी चाहिए| इसका निर्माण भूमि में होता है, अत: इसकी फसल के लिए अच्छी जल वाली निकास वाली भुरभुरी दोमट एवं रेतीली दोमट, कैल्शियम और मध्यम जैव पदर्थों युक्त मृदा की पीएच 5-8.5 उपुयुक्त रहता है | सामन्यता: 12 से 15 से.मी. गहरी जुताई उपयुक्त  होती है | 

बीज की मात्रा एवं बुआई : मूंगफली की बुआई का उपयुक्त समय सिंचित क्षेत्र में जून प्रथम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह है | 

बीज : झुमका किस्म का 100 किलोग्राम बीज (गुली) एवं विस्तारी किस्म एवं अर्द्ध विस्तारी किस्म का 60-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टयेर की दर से बुआई करें | झुमका किस्म में कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधों से पौधों में दुरी 10 से.मी. रखी जाती है | विस्तारी किस्मों व अर्द्ध-विस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधों से पौधों की दूरी 15 से.मी. उपयुक्त होती है | 

बोजोपचार : बीज को कवक एवं जीवाणु इत्यादि के प्रभाव से बचाने के लिए क्रमशः कवकनाशी (3 ग्राम थाइस या कार्बेन्डाजिम या 2 ग्राम मेंकोजेब से प्रति किलो बीज की दर) से, कीटनाशी ( एक लीटर क्लोरोपाइररीफास 20 ईसी से प्रति 40 किलोग्राम बीज की दर ) से और अंत में राइजोबियम कल्चर एवं फास्फेट विलेयक जीवाणु खाद से उपचारित करें | 

उर्वरक : मूंगफली के लिए 43 कि. ग्राम यूरिया, 250 कि. ग्राम स्फुर एवं 100 कि. ग्राम म्यूरेट पोटाश प्रति हेकटेयर की दर से उपयोग होना चाहिए | फास्फोरस, पोटाश एवं आधी मात्रा नत्रजन की भूमि में अंतिम जुताई के साथ लाइनों में बुआई कर दें।

सिंचाई : फसल में शाखा बनते, फूल निकलते एवं फली का विकास होते समय सिंचाई देना नितांत आवश्यक है, क्यूंकि ये अवस्थाएं अंत्यत महत्वपूर्ण होती हैं। इन अवस्थाओं पर नमी की कमी पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। फव्वारा सिंचाई पद्धति जायद मूंगफली के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हुइ हैं। 

  
 

 

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