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मां शिकारी देवी मंदिर के प्रति आस्था

Inder Singh Thakur
Submitted by Inder Singh on मंगल, 11/28/2017

शिकारी देवी का मंदिर की स्थापना कैसे हुई इसके बारे में एक कथा प्रचलित है । कहा जाता है कि जब पांडवो और कौरवो के बीच में जुए का खेल चल रहा था तब एक औरत ने उनको मना किया उसको खेलने से पर होनी को टाला नही जा सका और जुआ खेलने के फलस्वरूप पांडवो को अपना महल और राजपाट छोडकर निर्वासित होना पडा ।


जब पांडव अपना वनवास काट रहे तो वो इस क्षेत्र में आये और कुछ समय यहां पर रहे । एक दिन अर्जुन एवं अन्य भाईयो ने एक सुंदर मृग देखा तो उन्होने उसका शिकार करना चाहा पर वो मृग काफी पीछा करने के बाद भी उनके हाथ नही आया । सारे पांडव उस मृग की चर्चा करने लगे कि वो मृग कहीं मायावी तो नही था कि तभी आकाशवाणी हुई कि मै इस पर्वत पर वास करने वाली शक्ति हूं और मैने पहले भी तुम्हे जुआ खेलते समय सावधान किया था पर तुम नही माने और इसीलिये आज वनवास भोग रहे हो । इस पर पांडवो ने उनसे क्षमा प्रार्थना की तो देवी ने उन्हे बताया कि मै इसी पर्वत पर नवदुर्गा के रूप में विराजमान हूं और यदि तुम मेरी प्रतिमा को निकालकर उसकी स्थापना करोगे तो तुम अपना राज्य पुन पा जाओगे ।


पांडवो ने ऐसा ही किया और उन्हे नवदुर्गा की प्र​तिमा मिली जिसे पांडवो ने पूरे विधि विधान से स्थापित किया । चूंकि माता मायावी मृग के शिकार के रूप में मिली थी इसलिये माता का नाम शिकारी देवी कहा गया ।
 

इस मंदिर में मां की पिंडियों पर नहीं टिकती बर्फ, सीएम ने भी मांगी थी मन्नत

हिमाचल के मंडी जिले की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित मां शिकारी देवी अपने मंदिर में छत सहन नहीं करती है। माता शिकारी देवी खुले आसमान के नीचे विराजमान रहने में खुश रहती हैं। बारिश हो, आंधी हो, तूफान हो, मां खुले आसमान के नीचे रहना ही पसंद करती हैं। रोचक पहलू तो यह है कि माता की पिंडियों पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। इस बार भी वैसा ही हुआ है।
16 नवंबर के बाद बर्फबारी हुई, लेकिन मां की पिंडियों पर बर्फ नहीं टिकी। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित माता शिकारी देवी मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। शिकारी देवी मंदिर परिसर में चौसठ योगनियों का वास है जो सर्व शक्तिमान है। मंडी जनपद में शिकारी देवी को सबसे शक्तिशाली माना जाता है।


देवी के दरबार में प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु देवी के दरबार शीश नवाने दूर दूर से पहुंचते हैं। शिकारी देवी मंदिर और शिकारी धार की मनोरम वादियां पर्यटकों और श्रद्धालुओं को खूब लुभाती है। बर्फबारी में माता शिकारी देवी में कड़ाके की ठंड पड़ने से देवी के मंदिर के कपाट करीब तीन माह के लिए बंद हो जाते हैं।


जिससे माता तीन माह बर्फ में कैद रहती है। बर्फबारी में माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों पर प्रशासन प्रतिबंध लगाता है। मगर, माता के अनेक भक्त बर्फबारी में देवी से आशीर्वाद लेने के लिए शिकारी देवी में बर्फ में भी पहुंच जाते हैं।
बड़ा देव कमरूनाग रूठ जाएं तो पहुंच जाते हैं शिकारी देवी के पास मंडी जिला के बड़ा देव कमरूनाग अगर रूठ जाएं तो वे अपने मूल मंदिर से निकल जाते हैं और माता शिकारी देवी के मंदिर में विराजमान हो जाते हैं। देवता के कारदारों और गूरों को देव कमरूनाग को बड़ी मुश्किल से शिकारी देवी मंदिर से मनाकर लाना पड़ता है।


अब तक हजारों बार देव कमरूनाग रूठने पर माता शिकारी देवी के मंदिर में छिप चुके हैं। जब साजे के दिन देव कमरूनाग के मंदिर में कलया नहीं खपती है तो तब देवता के कारदारों को पता चलता है कि देव कमरूनाग मंदिर में नहीं है।
फिर शिकारी देवी मंदिर में जाकर विधि विधान से देव कमरूनाग को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है और देवता को मूल मंदिर में लाया जाता है।


सीएम समेत कई नामी हस्तियों की मां के प्रति आस्था है। प्रदेश के मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह ने अपनी धर्मपत्नी के साथ देवी शिकारी के मंदिर पहुंचकर पुत्र प्राप्ति की मांग की थी। जिसके बाद उन्हें देवी की असीम कृपा से पुत्र प्राप्ति हुई थी।

पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने शिकारी देवी को रोप वे से जोड़ने का दिया था आश्वासन सराज दौरे के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मंदिर को रोप वे से जोड़ने का आश्वासन दिया था मगर अभी तक इसका निर्माण नहीं हो सका है। यहां अनेक सरकारें आईं और गईं लेकिन आज दिन तक देवी शिकारी धार्मिक स्थल को न सरकार और न पर्यटन विभाग ने पर्यटन मानचित्र पर लाने की कोशिश की है।

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